१४ ॥ श्री धर्म दास जी ॥
पद:-
माला सदा घट में फिरै कोई ख्याल तो करते नहीं।
पांचों की आंच में नाच नाचत मन को वश करते नहीं।
शब्द पर सूरति लगाकर ध्यान तो धरते नहीं।
बाजा सुघर अनहद बजैं उस पन्थ पर परते नहीं।
रोम रोम से नाम धुनि सुनि मोद मुद भरते नहीं।५।
श्याम अनुपम रूप सन्मुख सुफ़ल तन करते नहीं।
शून्य में जाकर के सुधि बुधि मन को लय करते नहीं।
शुभ अशुभ सब कर्म जरि जहँ अमर हो मरते नहीं।
गर्भ में एकरार कीन्हों सो तो चित धरते नहीं।
भर्म के चक्कर में पड़ि यम काल को डरते नहीं।१०।
सतगुरु से बिन जाने अगम यह काम तो सरते नहीं।
धर्मदास निर्वैर निर्भय ते कभी गिरते नहीं।१२।