२४ ॥ श्री भीखा जी ॥
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जब कई होंय संघटन औतरें आई।
सुर मुनि चर औ अचर सुखी हों भाई।
राम स्वयं सरकार भरत जी विष्णु अंश हैं भाई।
लखन शेष को अंश शत्रुहन शम्भु अंश सुखदाई।
संसार उधारन हेतु आये सब भाई।२००।
यह जानै सकल जहान जगत यश छाई।
श्री जनक धाम का हाल यही है भाई।
जहाँ प्रगटीं जगत की मातु जानकी माई।
ऐसे करैं बाल चरित्र सबन सुखदाई।
बसि इतने में लेव जानि कहौं का भाई।२०५।
मथुरा में प्रगटे जाय कृपानिधि भाई।
तहँ कीन्ही लीला अधिक वरनि को पाई।
बालापन में बहु असुरन मारयो भाई।
नाना विधि लीला करी रह्यौ यश छाई।
श्री राधे जी का बाल चरित सुखदाई।२१०।
रुक्मिणी चरित्र विचित्र जानिये भाई।
श्री रामानन्द क बाल चरित्र लखिपाई।
गौराङ्ग महाप्रभु बाल चरित्र देखाई।
होवैं चरित्र नित नये नये सुखदाई।
सुर मुनि कहि सकते नहीं कहौं का भाई।२१५।
सब प्रेम पन्थ परि भूलि जात हैं आई।
तन मन की सुधि नहिं रहै कौन बतलाई।
यह दस चरित्र पवित्र मेरे मन भाई।
दस दिन देखौ मैं एक एक सुखदाई।
बरदान सबै सुर मुनिन दीन मोहिं भाई।२२०।
तब से नित देखौं एक एक हरषाई।
जो बाल चरित्र को पाठ करै नित भाई।
तन मन को करै एकाग्र प्रेम उर आई।
सो भब वन्धन से छूटि जाय सुख पाई।
थोड़े में दीन लिखाय अकथ है भाई।२२५।
सुर मुनि जिनका करैं भजन चित्त लाई।
भीखा की सुनिये अर्ज सबै जन भाई।
मैं बाल चरित्र में मस्त रहत हौं भाई।
प्रेमिन के पाठ के हेतु तुम्हैं बतलाई।
पढ़िहै सुनिहैं ये चरित्र हिया हुलसाई।२३०।
दोहा:-
दश चरित्र जे जन पढ़ैं दशों शान्त ह्वै जाँय।
पांच चोर गुण तीन मन, माया दीन बताय॥
भीखा भीख यही चह्यौ दीन कृपानिधि जान।
पढ़ा नहीं मैं हूँ कछू, बाल चरित मन मान॥
संतरूप हरि अवतरहिं, हरैं धरनि को भार।
भीखा हरि के भजन बिन, सबै दिसन अंधियार॥
भीखा सुमिरन सार है, और कछू नहिं सार।
या से हरि सुमिरन करो, मानो वचन हमार॥
भीखा वै कैसे जियैं, जिन्हैं न दरशन होंय।
जैसे जल बिन मीन गति, देंय प्राण को खोय।५।
मुरदा उनको जानिये, फंसे कामना कीच।
खाय तमाकू थूकिये, उनके मुख हैं नीच॥
पीक दान वा को कहत, नीचे धरा जो जाय।
ऊपर ते थूकैं सबै, पान तमाकू खाय॥
अबहीं तो चेतैं नहीं, सोवैं पांव पसार।
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