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२४ ॥ श्री भीखा जी ॥

जारी........

या को लेखा होयगो, साहब के दरबार॥

गर्भ कि बात बिसरि गये, देवै कौन जवाब।

यम उनको ऐसे धुनैं, जैसे बनै कवाब॥

गुदा इन्दिरी द्वार दोउ, उनके मुख से नीक।

मल औ मूत्र को त्यागि दें, तन ह्वै जावै ठीक।१०।

मानुष का तन पाइके, हरि से करै न प्रीति।

नाम की रीति को जानि ले, ह्वै जावै परतीति॥

हारि जाव जब यहाँ पर, वहाँ न पावो जीति।

भीखा के इस वचन को, मानि लेव दृढ़ भीति॥

भीखा हरि के भजन बिन, वृथा जानिये देह।

अपना कारज नहिं सरयौ, जरि के ह्वै गई खेह॥

भीखा हरदम हरि लखै, ता को प्रेमी मान।

नाहीं तो जन्मै मरै, होवै नहिं सुख जान।१४।