२९ ॥ श्री राधा जी ॥
दोहा:-
आठ चारि ढाई सुनि लीजै। शिष्य तुम्हार भये गुनि लीजै।
दीन बताय ठीक तुम युक्ती। पाइ गये मुक्ती औ भक्ती।
दयाल दास रुस्तम औ श्यामा। दर्शन इनको हों बसुयामा।
ऐहैं कृष्णदास पय हारी। कहिहैं हरि चरित्र सुखकारी।
तब यह चरित समापति होई। भरिहैं प्रभु यश तत्वनि चोई।५।