३७ ॥ श्री महात्मा खरगू जी ॥
पद:-
हर दम नैनन सन्मुख रहते सीता राम राधिका श्याम।
लक्षमी नारायण संघ राजैं षट दर्शन सुख धाम।
रोम रोम ते ररंकार धुनि जड़ चेतन हर ठाम।
कोटिन मुख ते कहत बनै नहिं नाम रूप का काम।
नैनन में मुख जीभ नहीं है जीभ में दृगनहि राम।५।
कहैं सुनैं समुझैं हरि आपै सब कछु आपै आम।
सर्गुण रूप ते लीला करते निर्गुण रहत अकाम।
निर्गुण सर्गुण बनत देर नहिं सर्गुण निर्गुण ग्राम।
जा को सतगुरु भेद बतावै सो होवै निष्काम।
जियतै मुक्ति भक्ति को पावै सुरति शब्द पथ थाम।
खरगू जय जय कार होय तब अचल रहै बसुयाम।११।
दोहा:-
सर्गुण निर्गुण ग्राम है, निर्गुण सर्गुण ग्राम।
खरगू सतगुरु कृपा बिन किमि जानै यह काम।१।