५३ ॥ श्री निर्भय दास जी, पासी ॥
पद:-
सीता राम भरथ औ लछिमन संग शत्रुहन दास हनुमान।
हर दम सन्मुख मेरे रहते सुन्दर दिव्य रूप गुण खान।
अनुपम छटा बनै नहिं बरनत कौन देऊँ परमान।
राम नाम धुनि एक तार भइ कौन करै जप ध्यान।
प्रेम भाव करि गुरू लखायो मम मन लीन्हेउ मान।५।
यह आनन्द कहौं मैं कहँ लगि तन मन धन कुर्बान।
सबै देव नित दर्शन देते प्रभु चरित्र करि गान।
कथा कीर्तन नाना लीला संघ कृष्ण भगवान।
विष्णु शम्भु ब्रह्मा नारद संघ गणपति शारद आन।
गान बजान करत हिय हर्षत नेक न तन मन मान।१०।
द्वैत भाव तन मन ते छूटै तब होवै यह ज्ञान।
दीन दयाल बसैं घट ही में सब सुर मुनि संघ जान।
परदा हटै दीनता आवै सबै तीर्थ असनान।
मुक्ति भक्ति सब नाम से होती खुलत आँखी कान।
इच्छा पूरी जियतै होवै रहै न तनकौ शान।
निर्भय दास कहैं सुनिये पद गुनिये तब कल्यान।१६।