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५४ ॥ श्री श्याम दास ब्रह्मचारी जी ॥


पद:-

हर दम सन्मुख मेरे सोहैं गिरिजा शंकर रूप बिशाल।

कानन में कुण्डल सर्पन के अधर गुलाबी लाल।

शिर पर गंगा करैं किलोलैं चन्द्र की शोभा भाल।

गले की शोभा नील मनोहर मोर कि कंठ मिसाल।

अरुण नयन औ बदन गौर सब गले में मुण्डन माल।५।

बिच्छुन की एक गुंज सुहावनि श्याम पीत हरे लाल।

बिच्छू श्वेत चहुँ दिशि शिर पर बिखुरे काले बाल।

हर हर करो कष्ट सब हर लें खुश हों बजतैं गाल।

राम सिया की भक्ति देत हैं मेटैं लिखा जो भाल।

यश शिशु धन की इच्छा होवैं कर दें माला माल।१०।

कर त्रिशूल डमरू डिमकावैं चारौं बेदन ताल।

बम्भोला जो प्रेम से बोलै छिन में करैं निहाल।

भस्म लगी सर्वाङ्ग मनोहर अंग अंग भूषण ब्याल।

भंग रंग पर ढंग निराला बीज मन्त्र तन शाल।

रोम रोम से ध्वनी उठत सन्मुख सिय राम कृपाल।१५।

पलकैं परैं न ख्याल में तत्पर प्रेम में प्रभु के आल।

योगेश्वर आचार्य्य नाम के देवन मध्य भुआल।

सब सुर महादेव कहि टेरत कांपत देख के काल।

प्रभु किरपा से उत्पति पालन प्रलय करैं तत्काल।

अजर अमर हैं राम नाम जपि कहं लगि कहौं हवाल।२०।

बाटैं सब को भक्ति राम की वृद्ध तरुण औ बाल।

राम नाम का भरा खजाना चुकै न ऐसा टाल।

नन्दी गण पायक हर केरे राम नाम तन ख्याल।

बाघम्बर अम्बर तन ऊपर लखत मोहनी डाल।

भजन करै निशि बासर हरि का होय न बांको बाल।२५।

सब जीवों पर दया मातु की कोमल बचन रसाल।

चम चम चमकै तेज बदन का जिमि अग्नी की ज्वाल।

दिव्य सिंगार अंग अंग भूषण उर मन्दारकि माल।

झांकी की छबि बनै देखतै कहत रहै नहिं ख्याल।

फूल धतूर बेल की पाती चन्दन अक्षत डाल।३०।

इतनी पूजा ते सब कछु दें गिरिजा शम्भु दयाल।

तन मन ते भक्तन संघ डोलैं काटैं भव भय जाल।

द्वैत भाव तजि दीन भाव गहि फंसौ प्रेम के जाल।

श्याम दास ब्रह्मचारी कहते जियतै होहु निहाल।३४।