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५८ ॥ श्री प्राग दास जी ॥


कजरी:-

झांकी श्री दुर्गा माता की मेरे सन्मुख है सुखदाय।

एक हजार वर्ष से पूजन कुल मेरे चलि आय।

ढाई सै बर्ष भईं हमको दर्शन देतीं माय।

भूषन अंग अंग में सोहैं दिव्य जानिये भाय।

बसन मनोहर लाल रंग के छबि अनुपम को गाय।५।

पांच पांच भुज दोउ दिश सोहैं अस्त्र सब में चमकाय।

काल के गाल से छोरि लेंय जो भजन करै चितलाय।

सिंह के ऊपर किहे सवारी देखत ही बनि आय।

अरुण कमल सम नैन सुहावन पलकैं परैं न भाय।

जपैं निरन्तर राम नाम को सन्मुख सिय रघुराय।१०।

भजन करै निष्काम जौन कोई मुक्ति भक्ति देंय माय।

करैं कामना धन शिशु यश की देवैं हिय हर्षाय।

ब्रह्मा बिष्णु महेश कि शक्ति से प्रगटीं मम माय।

सुर नर मुनिन के कार्य्य संवारै तन मन प्रेम लगाय।

लाल फूल सिन्दूर लौंग जो कोई देय चढ़ाय।१५।

गोघृत गुड़ अग्नि पर छोड़ै भोग मुनक्का लाय।

बाती शुद्ध बनाय रुई की गोघृत लेय भिजाय।

करै आरती खुश अति होवैं उर में लेंय लगाय।

सारा खेल है मन का भाई मन जा में रम जाय।

प्रागदास कहैं सांची मानो सो कारज बनि जाय।२०।