५७ ॥ श्री उमा दास जी ॥
कजरी:-
सन्मुख हर दम रहते मेरे स्वामी गणपति ज्ञान निधान।
एक दन्त दाया के सागर सोरह भुज सब जान।
अरुण नयन शुण्डी अति कोमल देखत चित्त लोभान।
शुण्डी में दुइ छिद्र सुहावन चिक्कन गोल हैं मान।
भाल विशाल सिंदूर को चन्दन श्रवण सुभग दोउ जान।५।
कर कोमल ग्रीबा अति चिक्कन सीना भरा समान।
नाभि गभीर तोंद की छबि कवि क्या कर सकत बखान।
कटि केहरि की कटि सम मानो सबैं देंय परमान।
कदली खम्भ समान जंघ दोउ परिया गोली जान।
मुरवा चढ़ा उतार बने दोउ चरण कमलवत मान।१०।
नब्बे नख अति लाले चिक्कन चमकीले हैं जान।
पग औ करन की गादी लाली बिम्बा फल सम मान।
धोती पीत रंग की पहिने गौर बदन अति जान।
गज मुक्तन की माल गले में नाभी तक लटकान।
शुकुल मण्डलाकार तेज के मध्य में लीजै मान।१५।
कमलासन आसन करि बैठे मूष के ऊपर जान।
श्वेत वरण के मूष हैं पायक नैन अरुण नख मान।
दिब्य अंबारी ऊपर सोहै नैनन जोति समान।
देखत बनै कहै का मुख से कहे बिना को जान।
राम नाम परताप ते पूजन प्रथम होत जग जान।२०।
राम सिया की झांकी सनमुख स्वामी के ठहरान।
राम नाम धुनि होत अखण्ड़ित रोम रोम ते जान।
पलकैं परैं नहीं एक टक हैं ताटक लागो मान।
बाहन मूष नाम को सुमिरैं निशि बासर सुख मान।
रिद्धि सिद्धि औ मुक्ति भक्ति दें वांझिन पुत्र को दान।२५।
पान फूल लै प्रेम से पूजौ देवैं चट बरदान।
गणन की भय नहिं रहै सुनो मम बचन लगाय के कान।
उमा दास जे नाम प्रथम लै करत कार्य्य कल्यान।२८।