६९ ॥ श्री झगरू दास जी ॥
पद:-
जय जय श्री सीताराम जय जय श्री राधेश्याम जय जय
श्री रमा बिष्णु राखो लाज मेरी।
माया औ पांच चोर द्वैत लीन घेरी।
मनुवाँ तिन संघ फंस्यौ पड़ी कठिन बेरी।
बासना नाना प्रकार उठतीं प्रभु बार बार तिरगुन की परयौं धार बूड़त नहिं देरी।
सुमिरन की बिधि क हाल जानत नहि हौं कृपाल धरिहै जब काल गाल जाय नर्क गेरी।५।
दानी हरि हौ उदार महिमा तुमरी अपार अधमन दीनन उधार सुर मुनि सब टेरी।
सतगुरु दीजै मिलाय पाप ताप सब नशाय सन्मुख झांकी देखाय मातु पिता तेरी।
रोम रोम राम नाम निकसै धुनि अष्ट याम झगरू करते प्रणाम
बार बार टेरी।८।
दोहा:-
झगरू जब तक नाम धुनि रोम रोम नहिं होय।
तब तक सन्मुख राम सिय हर दम कैसे होय॥