७२ ॥ श्री मोहन दास जी ॥
पद:-
जियतै श्री गुरु झांकी सन्मुख अन्तराय नहि मानो।
पक्का गुरु का भक्त वही है बचन सत्य यह जानो।
काम क्रोध मद लोभ मोह को रहै न बदन ठेकानो।
माया द्वैत तीनि गुण बशि भे दीन भाव उर आनो।
शान्ति शील सन्तोष छिमा औ श्रद्धा का उर थानो।५।
दया सत्यता प्रेम आयकै एकै में लिपटानो।
कसनी कितनौ परै सहै सब दुख सुख सम करि मानो।
मोहन अन्त में राम सिया ढिग गुरु समीप रहि जानो।८।