९८ ॥ श्री मच्छ भगवान जी ॥ दोहा:- भक्तन हित हम मच्छ कहायन। संखासुर को मारि नसायन। तन मन ते हमको जो खोजै। तिनको दर्शन दें हम रोजै॥