१०१ ॥ श्री रती जी ॥
पद:-
ठुमकि मटकि चलत चाल चपल श्याम राधे साथ।
मोर मुकुट शीश धारे कुण्डल कानन में प्यारे केशरि के तिलक माथ।
सुन्दर सब बसन अंग ग्वाल बाल सोहैं संग नूपुर पग वंशी हाथ।
बाजन की मधुर ताल नाचत त्रिभुवन भुवाल निरखत सुर मुनि सनाथ।
मुरली की धुनि सुनाय तन मन हरि लें लोभाय वृज के सब जन कृतार्थ।५।
सखा सखी दौरि दौरि नाचैं दृग जोरि जोरि बोलैं जै वृज के नाथ।
भृकुटी दोउ जिमि कमान कोरन दृग सैन बान धनि धनि धनि प्राण नाथ।
राधे कर पकरि लेत नाचत नहि जान देत ताली सब देत हाथ।८।