साईट में खोजें

११० ॥ श्री हुलसी माता जी ॥

जारी........

मंजन हम यमुना जाँय बैठैं तहं हरि लुकाय कपड़ा सब लें उठाय

तरुवर चढ़ि टँगैया।

जल में सब नंगी नारि बैठी करती पुकार कपड़ा दै दो हमार

लेवैं हम बलैया।

ऐसा इन सिख्यो ढंग सब को नित करत तंग लाग्यौ अब इन्हैं रंग

जगत के रमैया।

बोलत हंसि कै कन्हाय आओ सब पास धाय सब को हम दें पिन्हाय

काहै सकुचैया।८०।

नाहीं तो सुनो बात पहिनो सब कमल पात ठाढ़ी हो पांति पांति

देय सब पटैया।

पुरइन के पहिरि पात आवैं सब तहां मात निरखत औ मुसकरात

फेंकत पट कन्हैया।

बनिकै निल गोदनी मात लीला गोदन को जात गोदन करि मुसकिरात

जानै तब मैया।

बनिकै मनिहारी जांय चुरिया पहिरावैं माय चुटिकी फिर काटैं हाय

ऐसे दुख दैया।

बिसातिन को रूप धारि सुरमा मीसी पुकारि लेहौ कोइ बृज की नारी

बोलैं सुख दैया।८५।

मोहरे पर बैठि जांय देवैं पुड़ियां उठाय टिकुली चट लें छोड़ाय

भागैं हंसि मैया।

धोबिन बनि कबहूँ जावैं कोई नहि चीन्ह पावै कपड़ा सब बांधि लावैं

ग्वालन सब बटैया।

जंगल की जड़ी लाय गोली कछु लें बनाय घूमैं बृज गलिन जाय

झोरी लै कन्हैया।

बोलैं हम वैद्य राज वैद्यन के शिर के ताज करते हैं धर्म काज

लेवैं कछु न मैया।

घर में हम लें बोलाय बैठैं चुप चाप जाय देखैं फिर हाथ माय

परखैं सब रोगैया।९०।

खाने को गोली देंय संयम बतलाय देंय उठि कै हंसि गाय देंय

अंगन सब टोवैया।

नाउनि बन जात माय नहखुरि करते बनाय फूल बेलि पग बनाय

देवैं सुखदैया।

छोरैं जब केश मात झारैं फिर भलीभांति कंघी लै हाथि दांत

शुभग नग जड़ैया।

केशन में मलैं तेल ऐचैं करि एक मेल फूलन की कलिन बेल

केशन गुंथि देवैया।

चोटी को बांधि देंय सेंदुर को मांग देंय सुरमा दोउ दृगन देंय

इतर मुख मलैया।९५।

टिकुली माथे लगाय अरसी को दें देखाय गुच्चा गालन लगाय

भागैं फिर मैया।

दुहने जब गऊ जांय देखेन हम इनको माय बछरा संघ में पिआय

आपै खुब पिऐया।

दोहनी भरि जाय माय पीवैं फिर मूँह लगाय दुहि कै फिर लें पुराय

ऐसे जुठरैया।

बीथिन जहं जहं दुकान बैठत तहं जाय कान्ह मांगत दीजै मिठान

भूखे हम भैया।

नाना विधि की मिठाय देवैं सब लाय लाय खावैं हंसि हंसि कन्हाय

हरखैं हलवैया।१००।

सोवत देखैं निहारि भूषन सब लें उतारि देवैं शिरहाने डारि

चादर उतरैया।

केशन को झारि देंय चोटिन को छोरि लेंय चीटन से बांधि देंय

जारी........