११० ॥ श्री हुलसी माता जी ॥
जारी........
हाथन छिदि चटैया।
मेटुकी चट पट उतारि बालू कछु देंय डारि बेचै किमि कहौ नारि
पावत खसखसैया।
सब की नित होत हानि छोड़त नहिं अपनि बानि झगड़ा नित ठानि ठानि
लूटत दधि कन्हैया।
कपड़ा लघु भिजय वोरि मेटुकी में देंय डारि लेवैं साढ़ी उतारि
मुख में धरि लेवैया।
मही निरखि छोड़ि देत दही निरखि छोरि लेत कबहूँ कछु मही लेत
ऐसे चतुरैया।५५।
माखन जो पाय जात अपनै सब खाय जात ग्वालन ते कहत भ्रात
फटो दही लैया।
खट्टा कबहूँ बताय पावैं मुख को घुमाय ग्वालन संघ करि हंसाय दौरत
करि कुहैया।
सारी को पकड़ि लेत कर औ मुख पोंछि लेत बोलैं तो घुड़ुकि देत
आँखैं करि ललैया।
घंघरा को पकरि लेंय ठौरै बैठारि लेंय लैकर दधि पाय लेंय
छोड़ैं तब मैया।
लरिका नहि है अजान लेवै जो बचन मानि गावै क्या मधुर तान
चित के चोरैया।६०।
गौवैं नौ लाख मातु तुमरे सब जग बिख्यात काहे तब लूटि खात
गुनिये चित मैया।
पूछैं हम कहैं बात हमरे घर नहि पकात फीका हमको बुझात
तोर मीठ मैया।
घर घर का यही हाल कहँ तक को कहैं बाल चटक मटक चलत चाल
नुपुर पग बजैया।
रुमि झूमि आय जात हँसि हँसि के करत बात नैनन की कोर मात
सैन शर मरैया।
धीरज सब छूटि जात मेटुकी गिर फूटि जात निकसत नहि नेक बात
बोलैं किमि मैया।६५।
कोमल अति श्याम गात सब से यह जीति जात कौन चीज़ खात मात
इतनो बल अइया।
लावैं जब पकरि माय आवैं संघ हँसत धाय मेरे पति तन बनाय
लेवैं चट कन्हैया।
वँशी की धुनि सुनाय तन मन हरि लें लुभाय आँगन नहिं घर सुहाय
देखे बिन कन्हैया।
देखा हम इन्हैं मात ग्वालन की रोटी खात मानत नहिं जाति पांति
बन में दोउ मैया।
रोटी को खात जात बोलत मुख बात जात फूहर तुम सब की मात
सेंकत अरसैया।७०।
अपनी फिरि बांटि देत हँसि हँसि कै सबै लेत पूँछत फिरि करि कै हेत
कैसी कहौ भैया।
बोलैं सब ग्वाल भाय रोटी बड़ी नीक लाय बदलब हम रोज़ लाय
मीठी अति लगैया।
गौवन ढिग बैठि जांय मुख में थन लें लगाय पीवैं तहं दूध गाय
ऐसी सिख सिखैया।
तरुवर पर बैठि जांय हाँकन नहिं आप जाँय ग्वालन ते कहैं भाय
देखौ कहां गैया।
बंशी को दें बजाय गोवैं सब आय जाँय ऊपर को मुख उठाय
देवैं हंकरैया।७५।
यमुना में जल पिआय खूँटन फिर बांधै आय लेवैं बहु तन बनाय
निरखत चकरैया।
जारी........