१११ ॥ श्री शची जी ॥
जारी........
दोहा:-
याको बदला लेउंगो, राधे लीजै जान।
दुलरी की चोरी करूँ, गले से छोरूँ मान।१६।
चौपाई:-
बदला लिहे बिना नहिं मानौं। तब मोहिं नन्द क भैया जानौ।
कहैं राधिका सुनिये माई। लाल कि अपने यह चतुराई॥
सोये कदम छाँह सुख पाई। वंशी शिरहाने धरि माई।
मेरे संग सखी बहु आईं। यमुना जल लेने हर्षाई॥
यह बिचार मेरे मन आई। अस न होय कोइ लेय उठाई।
सखा सखी बृज के सब ही जन। वंशी सब ही को यह तन मन॥
बाहेर ग्राम क जो कोइ लेहैं। तौ वंशी नहिं देने ऐहैं।
यही समुझि हम लै गईं माई। बिकल जानि तस लै कर आई॥
कहैं कृष्ण सुनिये तुम राधा। आज बजावन में भइ बाधा॥२०॥
सोरठा:-
दुलरी गले में जौन, पहिरे हौ अनमोल जी।
छोरौं आय के भौन, मुख से कढ़ी न बोल जी।२१।
चौपाई:-
यशुमति मातु कि देऊँ दोहाई। बिन छोरे मोहिं चैन न आई।
यमुना पशु पक्षी कृमि बृज के। सुन्यो न मुरली मन दुख सब के॥
कानन के जीवन दुख भारी। आँसू नैनन ते हैं जारी।
बृज चौरासी कोस में जानौ। जल चर थल चर सब दुख मानौ॥
बछरा गैयन ढिग नहिं जावैं। गैयन को दुख थन चर्रावैं।
गैयां बछरन ते मुख मोरयो। शोक से अपना नाता जोरयो॥
सुर मुनि सब ब्याकुल हैं कैसे। मणि बिन फणि की गति हो जैसे॥
वृज घर घर के नर औ नारी। तुम्हैं छोड़ि सब को दुख भारी।
जल भोजन कोई नहि पायो। या से मम उर दुख अति छायो॥
जाव राधिका अपने घर को। खुशी करौं मै अब हीं सब को।
गईं लाड़िली भवन को धाई। मोहन मुरली दीन बजाई।२७।
दोहा:-
तीनि लोक चौदह भुवन, सात द्वीप नौ खण्ड।
धुनि सुनि तन मन अति मगन, फूट्यौ शोक को भण्ड।२८।