॥ माटी खान लीला ॥
जारी........
हम बोलेन तुम कौन हो माता। कहेव भगवती हम जग माता॥
तब हम कहेन जक्त की माई। कहाँ कृपा कीन्हेव तुम आई॥
बोलीं माता सुनो कन्हाई। तुम को बतलावन कछु आई॥
तब हम कहा बताओ माता। सुनकै मुद मंगल हो गाता॥
तब देवी सब हाल बतायो। तकिया में दुलरी खोजवायो॥
गले से छूटि गई थी दुलरी। राधे सोय गईं सुधि बिसरी।
तब हम चुपके लीन उठाई। तकिया में धरि दीन तहाई॥
गृह गृह में हम घूमन जावैं। कोइ सोवत कोइ जागत पावैं।
या से हम मन यही बिचारा। होत प्रभात लखै कोइ दारा।१९५।
लेय उठाय घरै लै आवै। फिर दुलरी वह देन न आवै।
राधे निशि बासर अकुलैहैं। बिन दुलरी के चैन न पैहैं॥
दोहा:-
सोवत में हम किसी को, नहीं जगावैं तात।
बड़े दोष की बात है नींद जाय अकुलात॥
वृज में तुम से चतुर कोइ, और नहीं है लाल।
तुम सब राधे कि मातु से, कहि आयेउ अहवाल॥
चौपाई:-
इतना कहि कै जक्त कि माई। भईं अदृष्ट न पड़ीं देखाई।
होत प्रभात उठेन हम माता। गयन नहान यमुन दोउ भ्राता॥
करि मञ्जन आयन गृह माई। माखन मिश्री मातु पवाई।
तब माता तुम्हरे गृह आयन। सबै बचन हम सत्य सुनायन।२००।
बचन कृष्ण के सुनि सुखदाई। राधे कि मातु उठीं हरषाई।
दोहा:-
शयन भवन में राधिका पौढ़ी पलँग निहारि।
शिरहाने से मातु तहँ तकिया लीन निसारि।२०१।
उठि बैठीं राधे तहां मातु को रहीं निहारि।
तकिया खोलि के मातु तब दुलरी लीन निकारि।२०२।
चौपाई:-
राधे के गले में बांध्यो माता। हर्ष से राधे क फूल्यो गाता।
माता हाथ पकरि के लाई। श्याम के चरनन शीश धराई॥
दोहा:-
सबै सखिन तहं पर कह्यौ धन्य धन्य वृजराज।
तुम सम दूसर और को सब के हौ सिरताज॥
चौपाई:-
तब बृषभान औ राधे कि माता। सखिन के मध्य कह्यौ यह बाता॥
राधे को हम सोपैं हरि को। अस कहि के पकरायो कर को।२०५।
अंगीकार करो हरि इनको। सुख होवै हमरे तन मन को॥
तहां सखी बहु मंगल गायो। देवन सुमन वृष्टि झरि लायो॥
नभ से सुर मुनि निरखैं कैसे। चकई शरद चन्द्र को जैसे॥
बृज की सखी सबै हरखानी। राधे मातु पिता सुख मानी॥
सबै परस्पर बचन उचारैं। यह जोड़ी हम रोज़ निहारैं॥
सब के हिरदय में युग झांकी। बसि जावै यह अद्भुत वाँकी॥
बिधि ने जोड़ी खूब बनाई। धन्य भागि हम सब वृज आई॥
दरशन ते तन मन हरषावैं। भूख प्यास की तपन बुझावैं॥
श्याम तहाँ पर कौतुक कीन्हा। सब के नेत्र बन्द करि दीन्हा।
ठाढ़ी सबै न आवै स्वांसा। सब के घट में भयो प्रकाशा।२१०।
श्याम मनोहर तहां बिराजैं। बाम भाग में राधे राजैं॥
होश में सबै सखी फिरि आईं। प्रेम में मस्त प्रेम निधि पाई॥
कह्यो कृष्ण अब जैहैं माई। भोजन की बिरिया नगचाई॥
पिता के संग में दोनों भाई। हम नित पावैं जानो माई।२१२।
सब के पीछे पावैं माई। नित्य नेम सब तुम्हैं सुनाई॥
दोहा:-
अपने अपने भवन को सबै सखी चलि जाँय।
गृह गृह में उत्सब मच्यौ, बाजै अनन्द बधाय॥
जारी........