॥ माटी खान लीला ॥
जारी........
चौपाई:-
अपने भवन कृष्ण तब आयो। मातु पिता लखि कै हर्षाये।
उठि बलिराम हिये में लायो। भय्या कहँ बड़ि देर लगायो॥
कृष्ण कहैं सुनिये मम भाई। भोजन करि के देंव बताई।
नन्द के संग में दोनो भाई। भोजन कियो परम सुख पाई।२१५।
दोहा:-
भोजन करि आचमन कियो तीनों जन हर्षाय।
तब यशुमति पावन लगीं तन मन प्रेम लगाय॥
चौपाई:-
माता पाय अँचय तहँ आईं। जहँ पितु संग बैठे दोउ भाई।
दीन श्याम सव हाल बताई। सुनि पितु मातु भ्रात हर्षाई॥
सब मिलि कहैं भई मन मानी। श्याम राधिका दोऊ गुण खानी।
ऐसी जोड़ी बिधि रचि दीनी। निरखत बनै प्रेम रस भीनी॥
घर घर बाजैं अनँद बधाई। प्रेम में भूले लोग लोगाई।
यशुमति बहु नाउनि बोलवाई। कह्यो जाव गृह गृह सब धाई॥
कह्यौ कि मम गृह मंगल गावैं। जो मांगैं सोई लै जावैं।
धन पट भूषन औ बहु गाई। देंउ आज जो मम गृह आई।२२०।
चलीं सबै नउनी हरखाई। गृह गृह में यह खबरि जनाई।
सब सुनतै उठि कै चलि दीन्हे। छोटे बड़ेन दबाव न कीन्हे॥
अपने अपने साज बजावत। कृष्ण भवन को गावत आवत।
नारी पुरुष यह जानैं नाहीं। को है नारि पुरुष कों आहीं॥
आँगन द्वारे नर औ नारी। नन्द के भीड़ भई अति भारी।
यशुमति पट भूषण धन ढेरी। आँगन धरि दीन्ही खुब गेरी॥
कह्यौ कि चहै तौन सो लेवैं। सकै न रोकि कोई हम देवैं।
जान्यो श्याम मातु पितु भ्राता। प्रेम में मस्त न समझैं बाता।२२४।
नर नारिन काहै बहु मेला। धन पट भूषन है नहि रेला।
दोहा:-
शक्ति आपनी श्याम ने तामे कीन प्रवेश।
नर नारी लै लै चलैं, घटै न जस के तैस॥
चौपाई:-
हाल जानि कछु गे यह हलधर। कीन्हेउ लीला जो मरलीधंर।
तब बलिराम कह्यो सब भाई। लूटौ मन भर खूब अघाई।२२६।
सोरठा:-
लूट्यौ नर औ नारी, भूषण पट धन राति भर।
आखिर सब गे हारि, ऐसा कौतुक कीन हरि।२२७।
चौपाई:-
बहु नर नारी गैया लीनी। बछरा बछिया सुघर नवीनी।
गैयां बछरा बछिया जितने। लै जावैं यहँ प्रगटैं उतने॥
नभ ते सुर मुनि फूल गिरावैं। जय जय श्याम श्याम कहि गावैं।
होत प्रभात गये दोउ भाई। श्री यमुना में जाय नहाई॥
करि अस्नान चले हलधर जी। पीछें पीछे मुरली धर जी।
सखिन समेत राधिका आवैं। मंजन हित श्री यमुना जावैं॥
हलधर नीचे शीश झुकाये। चले जात हरि के रंग छाये।
उन यह हाल जानि नहि पायो। श्याम मधुर स्वर बोलि सुनायो।२३१।
दोहा:-
मुरली की चोरी किहेव, ता को बदलो लीन।
अब तुम हमरो क्या करो, तुम हू को लै लीन॥
चौपाई:-
राधे नेक न बोलीं बानी। दोउ कर जोरयो औ मुसक्यानी।
सभी सखिन हँसि कह्यो बखानी। हरि तुम सम दूसर को ज्ञानी॥
पहुँचे दोउ भ्राता गृह जाई। माखन मिश्री मातु लै आई॥
पायो दोउ भ्राता हर्षाई। चले चरावन गौवैं धाई।२३४।
दोहा:-
माखन रोटी बाम कर, चैल में बांधे जान।
दहिने कर लकुटी लिये, कांधे कमरी मान॥
जारी........