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११२ ॥ श्री भोंदू दास जी ॥


पद:-

ब्रह्म अखण्डं परमानन्दं आदि न अन्तं रूप न रेखम्।१।

निर्गुण रूपं सर्गुण रूपं ब्रह्मानन्दं नित्या नन्दम।२।

सहजानन्दं निज आनन्दं जयोति स्वरूपं महा प्रकाशम्।३।

कच्छ मच्छ बावन वाराहं नर्सिहं रामं औ कृष्णम्।४।


दोहा:-

ब्रह्म सच्चिदानन्द हैं, ब्रह्म अखण्डानन्द।

सब में पूरण ब्रह्म हैं, भोंदू की मति मन्द।१।

नाम रूप परकाश जब, ब्यापक सब ही ठौर।

भोंदू द्वैत कहां रहा, देखौ करि कै गौर।२।

सब अन्तरगत ब्रह्म के, सतगुरु बिन को जान।

भोंदू हर दम सो लखै, जा के आँखी कान।३।


सोरठा:-

सतगुरु से लै ज्ञान, बनि गरीब तो जाइये।

भोंदू नाम की तान, खुलि मुद मंगल गाइये।१।

हर दम निरखौ रूप, निर्गुण ते सर्गुण बनै।

भोंदू सब के भूप, सर्गुण ते निर्गुण बनै।२।

एक से होंय अनेक, फिर अनेक से एक हैं।

भोंदू कौन विवेक, अगम अपार अलेख हैं।३।