११३ ॥ श्री आलम जी ॥
गज़ल:-
आलम के प्राण मोहन मुरली बजाने वाले।
चलते लचक के प्यारे भृकुटी नचाने वाले।१।
अद्भुत बनी है झांकी सब को लुभाने वाले।
क्या साँवली है सूरत सब में समाने वाले।२।
शेर:-
एक बार श्याम प्यारे मुरली बजा तो दीजै।
आलम अमल में माता, झलकी दिखा तो दीजै।१।
आऊँगा पास ही में तन मन से प्रेम मेरा।
बैठेजहां हो छिपके, देखूँ मुकाम तेरा।२।
तन छोड़ने की देरी मैं पास बास लूँगा।
बारह बरस क बनकर बैठूँगा ह्वै के गूँगा।३।
मारो चहै जिआओ दर का तेरे भिखारी।
तव नाम की धुनी है मम रोम रोम जारी।४।