साईट में खोजें

१३६ ॥ श्री कंस जी ॥


चौपाई:-

कृष्ण से बैर कियो हम भाई। मारि दिहेव बैकुण्ठ पठाई।१।

जे हरि को निशि बासर ध्यावैं। आवागमन कि ग्रन्थि छोड़ावैं।२।

कंस कहैं हरि से करि नेहा। सुमिरौ सुफल होय नर देहा।३।