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१३७ ॥ श्री दन्त बक्र जी ॥


दोहा:-

बैकुण्ठै पहुँचावते, बैरी कहे से श्याम।

निशि बासर जे ध्यावते, देवैं अचल मुकाम॥


सोरठा:-

दन्त बक्र कहैं धन्य, जे जन हरि सुमिरन करैं।

तिन पर हरि परसन्य, मै परिवार को लै तरैं।