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१३८ ॥ श्री आल्हा जी ॥


दोहा:-

देवी की पूजन करी तन मन प्रेम लगाय।

लता सजीवन मातु मोहिं दीन्हेव अति हर्षाय॥


चौपाई:-

कह्यो मातु या को तुम पावो। ह्वै कर अमर मोर गुण गावो।

तब हम कहेन मोर एक ताता। कृपा होय वा पर कछु माता।

कह्यो मातु आधी तुम पावो। आधी वा के हित लै जावो।

आधी हम तुरतै वहँ पाई। आधी साफ़ी में गठिआई।

भवन में पहुँचि गयन हम जाई। ईंदल को दै दीन बताई।

पायो सुत अति प्रेम लगाई। ठीक बताय दीन हम भाई।६।