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१५३ ॥ श्री शाकिर अली जी ॥


पद:-

सिय राम की छटा पर आशिक है मेरा तन मन।१।

प्राणों के प्राण प्यारे भजिये इन्ही को सब जन।२।

शाकिर यह सब जगह है दशरथ कौशिल्या के धन।३।

इन ही से प्रेम कीजै तन मन को करिके अर्पन।४।