१६० ॥ श्री एकादशी जी ॥
पद:-
तीरथ ब्रत अरु धर्म यज्ञ सब राम नाम में जानो।१।
नाम खुलै हर दम हरि सन्मुख मिटिगा आवन मानो।२।
दस इन्द्री गेरहे मन चंचल बंधि गो ठीक ठिकानो।३।
एकादशी कहैं सतगुरु बिन मिलै न पद निर्वानो।४।
पद:-
तीरथ ब्रत अरु धर्म यज्ञ सब राम नाम में जानो।१।
नाम खुलै हर दम हरि सन्मुख मिटिगा आवन मानो।२।
दस इन्द्री गेरहे मन चंचल बंधि गो ठीक ठिकानो।३।
एकादशी कहैं सतगुरु बिन मिलै न पद निर्वानो।४।