१६२ ॥ श्री चित्रकूट जी ॥
चौपाई:-
चित्त को प्रथम जौन कोइ कूटै। भर्म क भाँडा ता को फूटै।१।
तब वह बसै आवरण मेरे। चित्रकूट कहैं सुक्ख घनेरे।२।
दोहा:-
सुख बिलास में मगन सो हर दम धुनि सुनि नाम।
सन्मुख राम सिया लखन चित्रकूट बसुयाम॥
चौपाई:-
चित्त को प्रथम जौन कोइ कूटै। भर्म क भाँडा ता को फूटै।१।
तब वह बसै आवरण मेरे। चित्रकूट कहैं सुक्ख घनेरे।२।
दोहा:-
सुख बिलास में मगन सो हर दम धुनि सुनि नाम।
सन्मुख राम सिया लखन चित्रकूट बसुयाम॥