१६६ ॥ श्री मत्त गजेन्द्र जी ॥
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साधारण रीति से यहँ पर रहै जौन कोइ भाय।
उत्तम कुल में लौटिके आवै आगे बढ़तै जाय।
सत्संगति संतन की करिये बिगरी सुधरै भाय।५०।
पाप ताप सब नाशि होय औ लखि यमराज डेराय।
मत्त गजेन्द्र कहैं सुनि मानौ सत्य सत्य हम गाय।
राम नाम से नेह न छोड़ै सोई शूर कहाय।५३।