१७७ ॥ श्री बिष्णु काञ्ची जी ॥
चौपाईः- बिष्णु बिष्णु जे जपिहैं प्रानी। छूटै चौरासी हम जानी।१।
हरि के धाम जाय सुख पावैं। हव्य अनार पाय मुसक्यावैं।२।
भूषन वसन दिब्य तन सोहै। जिनहिं निरखि कुसुमायुध मोहै।३।
बिष्णु को भजन करै निष्कामा। तो फिरि जाय अमर पुर धामा।४।
दोहा:-
कहैं बिष्णु काञ्ची सुनो तन मन प्रेम लगाय।
भजन करो श्री बिष्णु का आवा गमन नशाय॥