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१७६ ॥ श्री शिव काञ्ची जी ॥


चौपाई:-

हर हर जपौ सुनौ सब बच्चा। फेरि न परौ नरक के गच्चा।

जो सुमिरन में रहिहैं कच्चा। सो परि हैं यम पुरी चभच्चा।

तन मन प्रेम लगाय के प्यारे। सुमिरो हर के होहु दुलारे।

जो सकाम भजिहौ शिव जी को। देहैं धन शिशु यश कोटी को।

ह्वै निष्काम भजै जो हर को। दर्श करावैं सिय रघुबर को।५।

मुक्ति भक्ति देवैं हर्षाई। अमर पुरी फिर देंय पठाई।

हर दम निरखै राम रूप को। अन्तर हरि के सिय स्वरूप को।

शिव काञ्ची यह कहैं सुनाई। जो जस करै तैस फल पाई।८।