१८० ॥ श्री घसीटे दास जी ॥
चौपाई:-
नित्य प्रलय सुनिये हर्षाई। राति दिवस बीतत जिमि भाई।१।
दूसरि तन छूटै तब जानो। कर्म अनुसार दुःख सुख मानो।२।
तीसरि आवागमन नशावै। करि निष्काम भजन गति पावै।३।
कहैं घसीटेदास सुनाई। मति अनुसार कहेन हम गाई।४।
चौपाई:-
नित्य प्रलय सुनिये हर्षाई। राति दिवस बीतत जिमि भाई।१।
दूसरि तन छूटै तब जानो। कर्म अनुसार दुःख सुख मानो।२।
तीसरि आवागमन नशावै। करि निष्काम भजन गति पावै।३।
कहैं घसीटेदास सुनाई। मति अनुसार कहेन हम गाई।४।