१९० ॥ श्री ताड़ुका जी ॥
दोहा:-
एकहि बाण ते राम मोहिं, मारि दीन हरि धाम।
दुष्ट कर्म मैं अति किहेंव, जप्यौ न कबहूँ नाम।१।
ऐसे दीन दयाल हरि, जिनका नाम है राम।
हर दम हरि को जो भजैं पावैं अचल मुकाम।२।
सोरठा:-
कहैं ताड़ुका ठीक यामें कछु संशय नहीं।
है यह पत्थर लीक, राम धाम जावै सही॥