१९१ ॥ श्री पूतना जी ॥
सोरठा:-
बिष दोउ कुचन लपेटि, चलि हतन मैं श्याम को।
माया की मैं बेटि सुभग रूप धरि बाम को।१।
वय किशोर बनि धाय, नन्द के गृह को मैं गई।
यशुमति लखि हर्षाय, मधुर बचन बोलत भई।२।
चौपाई:-
कहो सखी तुम कहां से आईं। दै आसन कर गहि बैठाई॥
तब मैं कह्यों दूर गृह माई। लाल के दर्शन हित मैं आई॥
भोली भाली यशुमति माई। दौरि श्याम को मम ढिग लाई॥
तब मैं कह्यों लाल मोहिं दीजै। लेउँ खेलाय मातु सुत कीजै॥
यशुदा मोहिं तुरत दै दीन्हा। दुलरायों मैं हरि को चीन्हा॥
कनियां लेतै तुरतै भाई। भयो प्रकाश वरनि नहि जाई।६।
दोहा:-
बाणी नभ ते भई तहँ आदि पुरुष हैं श्याम।
तेरो प्राण निकारिहैं देर नहीं हे बाम॥
चौपाई:-
कुचन में बिष लगाय जो आई। पीकर हरि तोहिं देहिं नशाई।१।
तब मैं मन में कीन्ह बिचारा। जो भागौं तो कहां गुजारा।२।
कंस सुनै तो अति रिसिआई। जान से तुरतै देय मराई।३।
या से हरि हाथन मरि जैहौं। तो बैकुण्ठ धाम को पैहौं।४।
दोहा:-
पाप जन्म भर कीन्ह जो सो अबहिं मिटि जाँय।
तन छूटै हरि पुर चलौं बिगरी सब बनि जाय॥
चौपाई:-
श्याम के मुख पर कुच हम लावा। तुरतै श्याम सुघर मुख बावा।१।
यशुमति देखि हँसन तहँ लागी। श्याम के प्रेम में थीं अति पागी।२।
हमसे कह्यौ कोई सुत तेरे। तब मैं कहा नहीं कोइ मेरे।३।
दोहा:-
कह्यो यशोमति दूध फिरि कहां ते कुच में होय।
झूठै दूध पिआवति बुद्धि गई का खोय।१।
चौपाई:-
तब मैं कहा सुनो हे माई। तन मन ते इच्छा ह्वै आई।
पूरी होय भावना जैसे। लाल को दे देहों मैं तैसे॥
दोहा:-
भईं यशोमति शान्त तब बोलीं नहि कुछ मान।
चुभुर चुभुर तब श्याम मम करन लगे कुच पान।१।
दोनो पगन हिलावहीं दोनो कर कुच थाम।
आधा बल मेरो हरयौ एकै कुच पी श्याम।२।
सुसती छाई बदन सब उठीं न सकी मैं जान।
दूसर कुच पीने लगे खैंचि लियो मम प्रान।३।
चौपाई:-
देह प्रथम जो रही हमारी। सो वहँ वैसे ह्वै गै सारी।१।
दिव्य बिमान तहाँ एक आयो। तामें बैठि परम सुख पायो।२।
चलै पारषद लै सिंहासन। जाय दीन बैकुण्ठ में आसन।३।
दोहा:-
जँह कौशिल्या मातु हैं तिनके बाँये जान।
ऐसी किरपा कीन हरि मानो बचन प्रमान।१।
पर बैकुण्ठकहैं उसे पर नारायण बास।
हरि के दर्शन होंय नित सब बिधि तहाँ सुपास।२।
चौपाई:-
प्राण हरत हरि दुख नहिं दीन्हा। अति शय दया मोहिं पर कीन्हा।१।
जैसे नशा पिआय के कोई। हरि लेवै धन भइ गति सोई।२।
दोहा:-
गति मातु की दीन मोहिं कहैं पूतना श्याम।
मुक्ति भक्ति को देंय हरि सुमिरौ आठों याम॥
१९२ ॥ श्री सूर्पणखा जी ॥
जारी........