२११ ॥ श्री कवन्ध जी ॥
चौपाई:-
कह कवन्ध सुनिये मम भाई। हरि औ हरि भक्तन यश गाई।१।
हरि मारैं तो दें हरि धामा। भक्तौ मारि देंय हरि धामा।२।
भक्तन की हरि की है एका। या में फरक नहीं है नेका।३।
एकैं हैं दुइ रूप बनावैं। जग के हित यह खेल मचावैं।४।
चौपाई:-
कह कवन्ध सुनिये मम भाई। हरि औ हरि भक्तन यश गाई।१।
हरि मारैं तो दें हरि धामा। भक्तौ मारि देंय हरि धामा।२।
भक्तन की हरि की है एका। या में फरक नहीं है नेका।३।
एकैं हैं दुइ रूप बनावैं। जग के हित यह खेल मचावैं।४।