२१२ ॥ श्री तपा दास जी ॥
चौपाई:-
शम नव इन्द्रिन को करि दीजै। दसवाँ द्वार खोलि तब लीजै॥
दम तन भीतर चोरन कीजै। नाम प्रकाश रूप लै लीजै॥
मुद तन भीतर आनन्द छाई। मंगल बाहर वही देखाई॥
तब सुमिरन से छुट्टी पावो। हर दम धुनि हरि लखि मुसक्यावो॥
पढ़ै सुने से बनै न भाई। साधन करै तौन सुख पाई।५।
दोहा:-
कथनी को त्यागन करै गहनी गहै सो शूर।
तपा दास कहैं तब लखै हरि पासै नहिं दूर॥