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२१९ ॥ श्री मेघनाद जी ॥


चौपाई:-

शेष की कन्या हम लै आय। शेष के अंश लखन बनि आय।१।

युद्ध कीन हम जीत न पावा। तब उन हमको मारि गिरावा।२।

मिल्यो प्रथम बैकुण्ठ सुहावन। रमा बिष्णु जहँ पर मन भावन।३।


दोहा:-

बदला लीन चुकाय उन गति हू उत्तम दीन।

मेघनाद तुम से कहैं कौन धर्म हम कीन॥