२२६ ॥ श्री मलिका विक्टोरिया जी ॥
दोहा:-
दुःख न देवै प्रजा को अपनि कमाई खाय।
हाथ पैर जब तक चलैं करिये यही उपाय॥
राजनीति जैसी चही तैसीन हम कछु कीन।
ना मालुम किस हेतु मोहिं हरि निज धाम को दीन॥
चारि दिना की ज़िन्दगी फेरि मिलै अति दुःख।
छल बल करि दुख देय जो पावै कब तक सुक्ख॥
पुण्य पाछिली का बिया जब घट जावै आय।
तब नैको नहि मिल सकै दाना पानी भाय॥
जब तक जग में जो रहै करै कार्य्य सब ठीक।
मलका कहै सुनाय सो यहाँ वहाँ पर नीक।५।