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२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥


पद:-

हरि की लीला ध्यान में देखा। सतगुरु कृपा कीन तब देखा।

धनुष बाण लीन्हें कर देखा। शंख चक्र गदा पद्मौ देखा।

मुरली अधर धरे प्रभु देखा। गोबर्द्धन नख ऊपर देखा।

दशरथ आँगन खेलत देखा। क्षीर समुद्र शेष पर देखा।

नन्द महरि मुख चूमत देखा। कौशिल्या के गोद में देखा।१०।

पिअत यशोमति के कुच देखा। अवध पुरी में बिहरत देखा।

बाम भाग संग लक्ष्मी देखा। वृज में रहस करत हंसि देखा।

सखा सखी संग में बहु देखा। तीनौ रूप श्याम अति देखा।

तीनौं शक्ती गोरी देखा। पावन परम मनोहर देखा।

बरनौं किमि नहि बुद्धि बिशेषा। भूषन बसन दिब्य तन देखा।२०।

केशर तिलक भाल बिच देखा। राज तिलक श्री अवध में देखा।

सोवत पय समुद्र में देखा। कुञ्जन में राधे संग देखा।

द्रुपदी बसन बने हरि देखा। श्री भृगु लता हृदय में देखा।

नाम कि धुनि संघ सन्मुख देखा। सुर मुनि बिबिध भांति के भेषा।

शून्य समाधि में कछु नहिं देखा। नाम रूप रंग वहां न रेखा।३०।

आगे बढ़ेन कृष्ण पुर देखा। नाना भांति कि सुरभी देखा।

फूले फूल सुगन्धित देखा। लगे अनार वृक्ष बहु देखा।

दूध की धारैं जारी देखा। ना कोइ दुहै करारी देखा।

नालिन में पय जाते देखा। हौजन में फिर भरते देखा।

आपै आप औटते देखा। शीतल ह्वै कर जमते देखा।४०।

बिना अधार क झूला देखा। श्याम के अन्तर श्यामा देखा।

ढारैं स्वयं चलैं तँह देखा। त्रिबिधि समीर बहै तहँ देखा।

मुरली धनुष बाण लिये देखा। संख चक्र गदा पद्म है देखा।

आठौं करन में धारे देखा। कोटि काम छबि वारे देखा।

हव्य अमार उठावत देखा। गरुड़ रूप बहु धारत देखा।५०।

सुर मुनि सबन दै आवत देखा। श्याम से हाल बतावत देखा।

श्याम नाम गौवैं कहैं देखा। श्याम प्रकाश वहां पर देखा।

आगे चलि साकेत को देखा। महा प्रकाश तहां पर देखा।

राम श्याम छबि अनुपम देखा। अगणित मदन निछावर देखा।

ऊँचे सिंहासन प्रभु देखा। सिया को हरि के उर में देखा।६०।

मणिन की बसुधा तहँ पर देखा। पुष्प बृक्ष बहु बिधि के देखा।

बेपरमान सिंहासन देखा। हरि के रूप संत बहु देखा।

तिन पर बैठे हैं सब देखा। बोलत नहीं किसी को देखा।

सिंहासन चढ़ि जाते देखा। श्री बैकुण्ठ उतरते देखा।

भांति भांति सिंहासन देखा। नर नारिन तहँ आसन देखा।७०।

झूलैं नारि पुरुष बहु देखा। मन्द मन्द मुसक्याते देखा।

पुष्प बृक्ष बहु सुन्दर देखा। चलत समीर सुगन्धित देखा।

पक्षी बिष्णु नाम कहैं देखा। हरि पुर सुभग धाम है देखा।

भूषन बसन लगे तरु देखा। गिरत दिब्य पृथ्वी पर देखा।

आपै सब इकठौरी देखा। गरुड़ सबन पहिरावत देखा।८०।

रूप बहुत बनि आवत देखा। हब्य अनार देत फिर देखा।

नर नारी हंस लेत हैं देखा। दुइ दुइ दोना सब ढिग देखा।

पाय के दोनो फेकत देखा। दोना अन्तर होते देखा।

धरनी पर नहिं गिरते देखा। सब के गले मे माला देखा।

श्वेत रंग अति आला देखा। नर्क जात बहु प्राणी देखा।९०।

बोलत दुख की बाणी देखा। यम पीटत लै जाते देखा।

तनकौ नहीं दयाते देखा। नर्क में जाय गिरावत देखा।

बूड़ै औ उतराते देखा। तरे से ऊपर आते देखा।

जारी........