२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥
जारी........
मुख से बोलि न पाते देखा। हाय हाय चिल्लाते देखा।
पल भर कल नहिं पाते देखा। कसे जंजीरन बांधे देखा।१००।
काटत तिनके कांधे देखा। भाला तन में कोंचत देखा।
सिंह श्वान तन नोचत देखा। सर्प भयानक काटत देखा।
कागा चोंच से मारत देखा। गदन से यम शिर फोरत देखा।
ऊपर चढ़ि तन तोरत देखा। उलटा टांगे खंभन देखा।
लोह कि साटिन पीटत देखा। नैन काढ़ि कै फेंकत देखा।११०।
लोह कि खूँटी ठोकत देखा। आरी शिर पर चलते देखा।
दुइ पल्ला होइ गिरते देखा। फिरि हरि इच्छा जुड़ते देखा।
दण्ड सहैं नहि मरते देखा। जीभ पै आरी चलते देखा।
ता से खून निकलते देखा। फटकत मुख फैलाये देखा।
यम जिह्वा कर थाम्हे देखा। कोल्हू में बहु पेरत देखा। १२०।
तप्त खम्भ कसि वांधत देखा। नैनन सूजा कोंचत देखा।
नाक कान में भोंकत देखा। परे पीव के हौजन देखा।
कृमि सब तन में काटत देखा। मुख नासिका में जाते देखा।
उलटि फेरि सब गिरते देखा। तैल कराहन खौलत देखा।
तिन में पापिन औटत देखा। अग्नि कि भटि्ठन झोंकत देखा।१३०।
चर चर चर चर जरते देखा। चाम कि थैलिन सीते देखा।
ता में बिष्ठा भरते देखा। बृक्ष बबूलन टाँगे देखा।
धीरे श्वांस निकलते देखा। सीसा औटि मुख डारत देखा।
गुदा द्वार ह्वै गिरते देखा। लोहा लाले करते देखा।
अबलन इन्द्री धरते देखा। नरन कि इन्द्री काटत देखा।१४०।
उन्ही के मुख डारत देखा। मुख में बारू भरते देखा।
सांस न नेकौ चलते देखा। नाना भांति के दुख तहँ देखा।
नर नारिन को सुख नहि देखा। जाय पताल लोक फिर देखा।
जल के ऊपर कच्छप देखा। चारि श्वेत दिग्गज तहँ देखा।
बारह श्वेत बराहौ देखा। कमठ के ऊपर शेष को देखा।१५०।
शेष के ऊपर पृथ्वी देखा। एक सहस मुख उनके देखा।
दुइ सहस्त्र दृग ता में देखा। पृथ्वी पर क्या रचना देखा।
ग्राम सहर पुर कस्बा देखा। बाग बगीचे जंगल देखा।
सरिता सागर नाले देखा। ताल तलैया पोखर देखा।
गुफा सुरंग कंदरा देखा। पर्वत बहुत भांति के देखा।१६०।
झरना तिन पर चलते देखा। कुण्ड व सरितन गिरते देखा।
कूप बावली कोटिन देखा। जल खारी औ मीठा देखा।
कहीं कहीं पर जल नहिं देखा। नर नारी दुइ बिधि के देखा।
नीक बेकार स्वभाव के देखा। काह कूह परिस्तानौ देखा।
देव परी तहँ पर बहु देखा। पशु पक्षि जल जीवन देखा।१७०।
बहु प्रकार के कृमिन को देखा। इन्द्रपुरी कैलासौ देखा।
हरि की चर्चा सब कहुँ देखा। पालन परलय उत्पति देखा।
दशौ दिशा दिग्पालन देखा। राम नाम जे जपते देखा।
ते नहिं जग में फंसते देखा। चन्द्र सूर्य्य तारा गण देखा।
इनके फिर धामन को देखा। ब्रह्मा जी के लोक को देखा।१८०।
सुर मुनि शक्तिन आश्रम देखा। बेद शास्त्र को पढ़ते देखा।
कथा कीर्तन कहते देखा। बहु बिधि बाजा बजते देखा।
राग बिलग नहि होते देखा। ध्यान समाधि लगावत देखा।
जल भोजन नहि पावत देखा। जप औ पाठको करते देखा।
धीरज मन में धरते देखा। द्वैत न तन मन आवत देखा।१९०।
दीन भाव उर लावत देखा। सत्य प्रेम पद पावत देखा।
हंसि हंसि हिय हर्षावत देखा। शव को ज़िन्दा करते देखा।
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