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२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥

जारी........

दुष्ट भूप कँपि जाते देखा। हरि को गुरु ढिग जाते देखा।

चरनन शीश नवाते देखा। सिंहासन पर बैठत देखा।५६०।

श्री गुरु लखन खुशी अति देखा। सिया को माल उठावत देखा।

सखिन को मंगल गावत देखा। हरि के ढिग फिर आवत देखा।

प्रेम में तन पुलकावत देखा। नैन नीर झरि लावत देखा।

हरि को माल पिन्हावत देखा। चरनन में फिर परते देखा।

कर जोरे दोउ उठते देखा। फिर गुरु चरनन परते देखा।६००।

श्री गुरु आशिष देते देखा। सिया को भवन में जाते देखा।

मातु कि गोद में बैठत देखा। परशु राम को आते देखा।

हल्ला बड़ा मचाते देखा। जनक को डाटि सुनाते देखा।

जनक शान्त ह्वै जाते देखा। लछिमन तँह बतलाते देखा।

मुनि को खूब बकाते देखा। मुनि कछु पार न पाते देखा।६१०।

लछिमन पर गुस्साते देखा। हरि को सैन चलाते देखा।

लखन शान्त ह्वै जाते देखा। हरि मुनि संग बतलाते देखा।

मुनि हरि को धनु देते देखा। हरि को धनु को लेते देखा।

चाप आप ही चढ़ते देखा। मुनि को चरनन परते देखा।

हरि उठाय उर लाते देखा। मुनि को स्तुति करते देखा।६२०।

करि प्रणाम फिर चलते देखा। उत्तर मुख को जाते देखा।

फेरि लौटि नहि आते देखा। अवध सँदेशा जाते देखा।

सजि बरात फिरि आते देखा। सुर बहु रूप बनाते देखा।

सब को तहां टिकाते देखा। सब की खातिर करते देखा।

बहु प्रकार सुख देते देखा। जनक के आँगन मंडप देखा।६३०।

परम मनोहर छावा देखा। सुर मुनि शक्तिन बैठे देखा।

नर नारिन बहु पुर के देखा। दान करत तँह पर बहु देखा।

धन पट मणि भूषण गो देखा। ब्रह्मा बेद पढ़त तँह देखा।

गौरि गणेश कि पूजन देखा। चारो महरानिन संग देखा।

चारों कुँवर बैठ तँह देखा। गठि बन्धन सब कीन्हे देखा।६४०।

खम्भ के चहु दिशि घूमत देखा। पीढ़न पर फिरि बैठत देखा।

फिरि गठि बन्धन छोरत देखा। जनक को मणि पट देते देखा।

नापित को खुश होते देखा। सब समाज को उठते देखा।

फिर जेवनार को होते देखा। गारि गान तँह होते देखा।

बहु सखियाँ मिलि गाते देखा। सब को फिरि तब उठते देखा।६५०।

निज निज आसन जाते देखा। फेरि कलेऊ होते देखा।

प्रेम सहित सब पाते देखा। सखिन को हास्य करत तँह देखा।

उत्तर कुँवर देत तँह देखा। दाइज जनक देत तँह देखा।

कहत बनै नहि नैनन देखा। बिदा बरात होत तँह देखा।

अवध पुरी में पहुँचत देखा। सब प्रसन्न होय बैठत देखा।६६०।

अवधपुरी अति मंगल देखा। चारौं डोलन परछन देखा।

याचक सकल अयाचक देखा। कौशिल्या कैकेयी को देखा।

संग सुमित्रा सखि बहु देखा। सातौं सै रानिन को देखा।

अरुन्धती माता को देखा। चरनन पर शिर धरते देखा।

मंगल गावत सब को देखा। कुँवर कुँवारि सब चलते देखा।६७०।

चारिऊ कुँवर मनोहर देखा। बीच में सबके चलते देखा।

अनुपम भवन ठहरते देखा। कैकेयी बर मांगत देखा।

दशरथ बोलि न पावत देखा। राम लखन बन चलते देखा।

सिया को साथ में लेते देखा। मातन चरन छुवत सब देखा।

पिता के ढिग को आवत देखा। पाता निरखि दुख पावत देखा।६८०।

मुख से बोल न आवत देखा। करि प्रणाम सब चलते देखा।

जारी........