२४८ ॥ श्री जफ़र खां जी ॥
शेर:-
यादगारी करते रहिये भाईयों अल्ला कि रोज।
दुनिया कि बातैं औ सब समझो यह है बदबू क गोज़॥
मगज़ की भुकाना औ खपना फज़ूल। समय जाया करना
न हो कुछ वसूल॥
नतीजा मिलै उसका दोजख तुम्हैं। यही सोच कर रहम आता हमैं॥
जाहिर करो काम तन से तो खूब। मगर बातिन हर दम भजो नाम खूब॥
रहौ पाक बेबाक औ रहम दिल। तो तुमको खुदा आप ही जांय मिल।५।
कमल सातहू चक्र षट ठीक हों। जगै नागिनी काम सब नीक हों॥
पहुँचि कोटि त्रिकुटी में जाओगे जब। वहां पर त्रिबेनी नहाओगे तब॥
लखौ नूर ही नूर फिर तुम वहां। नहीं रूप औ रंग दूसर जहां॥
वहां से बढ़ो ध्यान में जाओगे। अजब खेल अल्ला क वहँ पाओगे॥
पहुँचि जाओ लय में न सुधि बुधि रहे। उतर करके आओ
तो फिर चित चहै।१०।
जहां में तो रहना सदा है नहीं। रहेगी बुराई भलाई सही॥
छुटैगा यह तन एक दिन दोस्तौं। सड़ैगा कबर में सबी गोश्तौ॥
पड़ैं उसमें कीड़े तहां बेशुमार। अभि जिसको कहते हो तन यह हमार॥
उसे कीड़े खा कर के मर जांयेगे। सिरिफ़ ढांचे हडि्डन के रह जांयेगे॥
हवा गन्दी उस से निकल जायगी। कबर की लकड़ियां दिमक खांयगी।१५।
फिर कबरों के ऊपर उगैं झाड़ियां। मिलैं फिर न मादर पिदर प्यारियां॥
बिरादर अजीज़ो न हमशीरा खाला। न फरजन्द जोरू न मामू न साला॥
मिलै भिश्त उनको जे हर दम जपैं। नही तो वो दोज़ख़ में जाकर खपैं॥
श्री रामानन्द जी का दर्शन मिला। तभी से हमारा यह तन मन खिला॥
ज़फ़र कहता खोजो सफर करके यार। बता देगा मरशिद तो होगा दिदार॥