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२५९ ॥ श्री बिष्णुप्रिया जी ॥


पद:-

क्या झाँकी है वाँकी कन्हैया की।

घुँघुवारी अलकैं अति काली गालन पर लटकैया की।

मोर मुकुट शिर कानन कुण्डल मुरली मधुर बजैया की।

केशर तिलक भाल बिच राजत कज्जल दृगन लगैया की।

मुख ताम्बूल नाक नाशा मणि फाहा इतर सुघैंया की।५।

चंचल चपल चलत झुकि झूमत तिरछा चरण धरैया की।

चन्दन चर्चित नील बदन पर उर भृगु चरण रखैया की।

भूषण बसन मनोहर साजे कटि पट पीत कसैया की।

सखा सखी राधे संग सोहैं रास बिलास करैया की।

गावत राग रागिनी स्वर भरि दोउ कर ताल देवैया की।१०।

नाचत छम छम नूपुर बाजत दामिनि सम दमकैया की।

संग में साज बजत नाना बिधि सब पर ख्याल चढ़ैया की।

सुर मुनि चढ़े बिमानन निरखैं जय बोलैं छबि छैया की।

रूप अनेक बनत नहिं देरी कर से कर पकरैया की।

हिलि मिलि रास करैं सब के संग घूमि के बैठि जवैया की।१५।

फिरि अनेक से एकै राजत सब उर प्रेम पगैया की।

उत्पति पालन परलय औ लय भाँजत पलक करैया की।

ध्यान समाधि कीरतन सुमिरन का परचार सदैया की।

पढ़ि सुनि गुनि साधन करि तरिहैं जग हित खेल मचैया की।

जैसा समय वैसही लीला करि जग हिय हरषैया की।२०।

आरति होय लखै सो छबि को चर औ अचर करैया की।

आतम अनुभव रूप रूप बिन परम स्वरूप सुखदैया की।

सब में ब्यापक सब से न्यारे सब की फिकिर लेवैया की।

भञ्जन धरनि भार भक्तन हित निर्गुन सगुन बनैया की।

अगणित युगन ते शेष औ शारद बरणत जस न चुकैया की।२५।

सतगुरु करि जप की बिधि जानो पूरन आस करैया की।

नाम में सूरति मूरति सन्मुख नैनन नैन भिड़ैया की।

बिष्णु प्रिया कहै हर दम धुनि हो तन मन प्रेम फँसैया की।२८।