२६६ ॥ श्री दुलारे दास जी ॥
पद:-
युक्ति सों जगाइये जगत पति भक्त जन तन को यह लाभ तो
जियतै लै लीजिये।१।
आतमा लखत जाहि अगम अनूप सोहै ताहि अभ्यास करि
सन्मुख कीजिये।२।
तन मन प्रेम करि शब्द पै सुरति धरि ध्यान औ समाधि सुख जानि
रंग भीजिये।३।
तन को बृथा गँवाय अंत पछितैहौ जाय कहत दुलारे दास
सतगुरु कीजिये।४।