२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥
पद:-
सतगुरु शब्द भेद जब से बतायो मोहिं करि अभ्यास
कछु जानि मै तो पायो है।
नाम धुनि खुलि गई राधे श्याम सन्मुख राजैं तेज चहुँ ओर
झाँकी बीच में सुहायो है।
चारों तन शोधन भे पांच तत्व जानि लीन नागिनी जागृत भई
आलस हटायो है।
षट चक्र बेधन भे सातह कमल खिले तीन चारि पांच औ
पचीस को भगायो है।
गुदा चक्र गणपति संग शक्ति राजत हैं इन्द्री चक्र ब्रह्मा शक्ति संग
छबि छायो है।५।
नाभि चक्र रमा बिष्णु हृदय चक्र शिवा शिव कण्ठ चक्र आतम
इच्छा शक्ति प्राण पायो है।
कमल सहस दल जापै ब्रह्माण्ड धरा त्रिकुटी के नीचे
गति सुघर सुहायो है।
उमा औ निरंजन फेरि जोति संग सोहत हैं निरखि निरखि
अति हिय हुलसायो है।
त्रिकुटि के चक्र पर ब्रह्मा बिष्णु शम्भु बैठे जपते हैं रेफ बिन्दु
बीज जो कहायो है।
शुकुल प्रकाश ता को चम चम चमकत देखत बनत
बे अधार तँह छायो है।१०।
आशिर्वाद तीनो देव मोको दै दीन तहां खोलि दीन फाटक
त्रिबेणी जी नहायो है।
लखि कै प्रकाश जोति ध्यान में पहुँचि गयो लीला तँह
बहु बिधि देखने में आयो है।
आगे बढ़ि शून्य में समाय कछु देखा नहि आगे जाय
कृष्ण लोक देखने में आयो है।
श्याम के हृदय माहिं श्यामा तँह शोभा देवैं झूला है अधार बिन
चलत लखायो हैं।
सुरभी अनेक भांति नाना रंग बृक्ष फूल लगे हैं अनार तरु
बहु लखि पायो है।१५।
गिरत अनार और आप ही इकट्ठा तहां बड़े बड़े टाल लागि
देखि मन भायो है।
गौवन के थनन ते दूध आपै आप गिरै नालिन में ह्वै के फेरि
हौजन में आयो हैं।
आपै आप खौलत आपै आप ठण्ढा होत आपै आप जामि
नाम हब्य कहवायो है।
गरुड़ अनेक रूप धरत तहां पै जानो हब्य और अनार
बाँटने क ठेका पायो है।
सुर मुनि आश्रमन जाय पहुँचाय आवैं लौटि फिर
श्याम को हिसाब बतलायो है।२०।
श्याम है प्रकाश तहाँ श्याम श्याम गावैं कहैं श्यामा श्याम छबि
लखि प्रेम उमड़ायो है।
फेरि साकेत जाय महा परकाश पाय राम रूप संत बहु बैठे
लखि पायो है।
फूलन के बृक्ष तहाँ रंग रंग शोभा देत बसुधा मणिन लखि
भाँति भाँति पायो है।
सुभग सिंहासनन बैठे नहि बोलैं सन्त मनहु पाषाण
हरि प्रतिमा धरायो है।
सब से ऊँचा है यान तेज तामे है महान राजत हैं ता पै हरि
लखने में आयो है।२५।
राम ब्रह्म के हदय में राजती हैं आदिशक्ति उपमा अवरणीय
कहि कौन पायो है।
जारी........