२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥
जारी........
शब्द पै सुरति धरि जियतै में जाय मरि तन मन प्रेम करि
जानि सोइ पायो है।
चन्द्र सूर्य्य एक करि सुखमन माहि परि चित्रणी में जाय फिरि
बज्रणी समायो है।१०५।
ता के अभ्यन्तर धुनि शुकुल धुवाँ के रंग सुर मुनि शक्ती
वायु रूप ते लुभायो है।
रं रं रं धुनि एक तार सदा रहै सब में प्रवेश
सब खेल को बनायो है।
जाने बिना मानै कौन जानि कै न होवै मौन देय उपदेश अति दीन ह्वै
सो पायो है।
सुर मुनि प्रेम लखि संग हर्षि बैठैं आय नाना भांति खेल करैं
कहिवे न आयो है।
त्रिकुटी के बाँये दिशि छिद्र इकयावन की हड़डी एक टेढ़ी मेढ़ी
बिधि ने बनायो है।११०।
ता के मध्य छिद्र जौन ता में ह्वै के जात योगी ऐसा यह राज योग
हरि ने चलायो है।
प्रथम श्री आदि शक्ति शम्भु को बतायो भेद जा से आप नाम जानि
रूप में लोभायो है।
फेरि आय उमा को बताय या को भेद दीन्हो सुनि लीन्हो शुक
सोऊ अमर कहायो है।
प्रभु की इच्छा से यह मार्ग आदि शक्ति मातु जानि अधिकारी
हनुमान को बतायो है।
हनुमान जी से श्री ब्रह्मा जी ने लीन लै ब्रह्मा से वशिष्ठ
सनकादिक ने पायो है।११५।
सनक सनन्दन औ सनत कुमार जी ने सुर मुनि ऋषिन में
खूब फैलायो है।
शुक देव नारद वशिष्ठ और अंगिरस कपिल अगस्त
उद्दालक लुटायो है।
नवों योगेश्वर ब्यास नवों नाथ राघवानन्द रामानन्द को लखाय
जग में बँटायो है।
नानक, कबीर, रैदास, तुलसीदास, सूरदास हरि यश को
आनन्द बरसायो है।
दादू और सुन्दर, जग जीवन, रघुनाथ दास आय जग माहिं
बहु जीवन चेतायो है।१२०।
ह्वै गये हैं और ह्वै हैं हमेशा रहैं चारों युग खेल यह
ऐसै होत आयो है।
जियत में जाने बिन भव नहि पार होय बृथा बकवाद में
न मन सुख पायो है।
कहत भगवान दास सतगुरु कीन पास दुख सब भयो नाश
परमानन्द छायो है।१२३।
दोहा:-
कुण्डलिनी का श्याम रंग उमा मातु का अंश।
भगवान दास कहैं जगै जँह, होय दुःख बिध्वँस॥
चौपाई:-
नाभि से हृदय तक चलि आवै। हरा रंग ता को बनि जावै॥
हृदय से कँठ को करै पयाना। बदलै लाल रंग हम जाना॥
कँठ से सुखमन घाट पै जावै। सुकुल रंग ता को दरशावै॥
सुखमन ह्वै जब गगन को चलती। पीत रंग चम चम चम खिलती॥
गगन से लै समाधि में जावै। जा को नाम शून्य कहावै।५।
मन गुण प्राण जीव औ आतम। नागिन संघ लै हों परमातम॥
सुधि बुधि रहै न तँह पर भाई। महा घोर निद्रा जिमि आई॥
हरि इच्छा से फिर बिलगावै। चारौं ध्यान क खेल दिखावै॥
जारी........