२६७ ॥ श्री भगवान दास जी ॥
जारी........
दीनता हु लखि पायो है।
सत्य श्रृंगार प्रेम छबि मुक्ति भक्ति तप ज्ञान औ बिराग
ध्यान मै समाधि आयो है।
चारि चारि भुज निज कार्य्य में निपुण सब धन्य वै भक्त
जिन इनको हटायो है।८०।
योग विश्वास परतीति जप यज्ञ पाठ पूजा अनुराग
श्वेत देखने में आयो है।
अर्थ धर्म काम मोक्ष साधन बिचार आशिर्वाद नमस्कार औ प्रणाम
श्वेत पायो है।
छींक श्राप भूख प्यास खजुली अज्ञान हाय बासना अगार में
बिगार करवायो है।
पालन उत्पत्ति परलय ब्रह्मानन्द परमानन्द जाग्रत तुरिया तीत
श्वेत लहरायो है।
मुद और मंगल कल्याण गुण शुभधाम सूरति ख्याल हाल
लखि श्वेत पायो है।८५।
अनुचित अरुचि अपच औ कुरूप रूप ऐड़ाई और हिचकी
अशुभ स्याह पायो है।
संचित प्रारब्ध क्रिया मान जो हैं संतन के श्वेत रंग भोग को
भोगाय पहुँचायो है।
दैहिक औ दैविक औ भौतिक ये तीनि ताप पर सन्ताप रूप श्याम
देखने में आयो है।
रूप रस गन्ध स्पर्श से मलीन होत नाहीं तो ये श्वेत रंग
सुन्दर सुहायो है।
दोहा चौपाई छन्द सोरठ पहेली पद कवित्त सवैया औ
कुण्डलिया लखि पायो है।९०।
बेद शास्त्र औ पुरान धन्य जय संस्कृत व्याकरण औ
ज्योतिष श्लोक दरशायो है।
अन्वय स्वर ब्यञ्जन औ हृस्व दीर्घ संज्ञा अर्थ प्रकरण अनुस्वार
लखि हरषायो है।
गीता और मानस रामायण वशिष्ठ योग भागवत महाभार्त
रूप दर्शायो है।
मल मूत्र उलटी खखार थूक खूँट मैल चीपर औ गारी हल्ला
झगरा लखायो है।
मारु लागि टूट फूट डोलि फूलि पाक घाव कहाँ तक कहौं शब्द शब्द
लखि पायो है।९५।
शुद्ध शब्द भाखने से शुद्ध रूप रंग जानो भाखिये अशुद्ध शब्द
काले ह्वै बिलायो है।
मुख से कढ़त बाहेर रूप सब देखि लेव निष्काम भये बिन
देखि कौन पायो है।
तत्तवन की चाल स्वाद बास औ अहार देखि लीजिये स्वरोदय माहिं
शम्भु बिलगायो है।
इंगल औ पिंगल औ सुखमन बज्रणी औ चित्रणी औ षट चक्र रंग
ईसा गायो है।
सातहू कमल रंग देवन के बास जहाँ शम्भु शुक नानक
जग जीवन बतायो है।१००।
सुर मुनि संत जग हेतु परचार करैं जाको जानि जीवि
भव सिन्धु पार जायो हैं।
पूछि घोखि चेति हृदयाङ्गम करै औ फेरि साधन को सिद्धि करि
नाम रूप पायो है।
नाम रूप लीला धाम ध्यान औ समाधि एक रेफ़ बिन्दु जानने से
सब हाथ आयो है।
जारी........