२६८ ॥ श्री बिजयी दास जी ॥
पद:-
आतमा चिद आतमा परि ज्ञातमा परमात्मा।
घटा काशमा मठा काशमा आकाश मा महाकाशमा।
धाम मा औ लीलामा औ ध्यान मा समाधि मा।
पृथ्वी मा औ बारि मा औ अगिन मा समीर मा।
राग मा औ साज मा औ ताल मा आलाप मा।५।
धुनी मा औ स्वरन मा श्रृङ्गार मा औ छबी मा।
बिराग मा अनुराग मा औ ज्ञान मुक्ति भक्ति मा।
योग मा औ भोग मा संयोग मा बियोग मा।
धर्म मा औ कर्म मा औ नेम मा औ टेम मा।
शान्ति मा औ शील मा सन्तोष मा औ आर्ति मा।१०।
सरधा मा औ छिमा मा औ दया मा औ धैर्य्य मा।
सत्य मा औ प्रेम मा औ ख्याल मा औ चित्त मा।
काम मा औ क्रोध मा औ लोभ मा औ मोह मा।
अहँकार मा औ माया मा अज्ञान मा औ निद्रा मा।
दम्भ मा पाखण्ड मा औ कपट मा औ झूठ मा।१५।
अपिमान मा औ दुःख मा औ हानि मा औ शोक मा।
मान मा औ सुक्ख मा औ हर्ष मा औ लाभ मा।
पूजन मा औ पाठ मा औ यज्ञ मा कल्याण मा।
रिद्धि मा औ सिद्धि मा औ बृद्धि मा उदार मा।
सहन मा औ गहन मा औ रहन मा औ कहन मा।२०।
परनाम मा नमस्कार मा आशिर्वाद मा स्वीकार मा।
उत्पति मा औ पालन मा औ परलय मा औ इच्छा मा।
संचित मा क्रियमान मा प्रारब्ध मा प्रसिद्ध मा।
दैहिक मा औ दैविक मा औ भौतिक मा औ साइत मा।
यन्त्र मा औ तन्त्र मा औ मन्त्र मा औ शक्ति मा।२५।
राति मा औ दिवस मा औ मास मा औ बर्ष मा।
बेद मा औ शास्त्र मा पुराण मा उपनिषद मा।
आदि मा औ मध्य मा औ अन्त मा ख्याल मा।
सन्तुष्ट मा औ पुष्ट मा औ चतुर मा औ चपल मा।
तकदीर मा तदबीर मा गम्भीर मा रणधीर मा।३०।
जल चर मा औ थल चर मा औ नभ चर मा बन गिरिन मा।
तिरगुन मा औ प्रकृति मा औ तन मन मा सर्वत्र शब्द शब्द मा।३२।