२६९ ॥ श्री ताम्र ध्वज जी ॥ दोहा:- गो ब्राह्मण सुर सन्त औ दीनन की सेवकाय। ताम्र ध्वज कहैं करैं जे, सीधे हरि पुर जाँय॥