२८२ ॥ श्री जगण जी ॥ चौपाई:- जगण कहैं जग जाल करारा। सुमिरि नाम भव होवौ पारा।१। तब तन छोड़ि अमरपुर जावो। राम रूप ह्वै बैठक पावो।२।