२८७ ॥ श्री गोपाल दास जी ॥
पद:-
सब सुर मुनि लोक जीवों का सरदार सँवलिया।
जो गौवों संग बन बन घूमें ओढ़े कमरिया।
माखन दहि को लूटि ले चट रोंकि डगरिया।
ग्वाल बाल संग में क्या करैं गुजरिया।
जल भरन सखी यमुना जावै फोरैं गगरिया।५।
यमुना में नहाते लखै लै भागै चदरिया।
देवै बजाय मधुर मधुर जहाँ मुरलिया।
सुधि बुधि न रहै तन की पड़ै प्रेम फँसरिया।८।