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२९० ॥ श्री जवाहिर सिंह जी ॥


पद:-

चतुर चपल चञ्चल चटकीलो यशुदा तेरो श्याम।

भोरै ते सब बीथिन निरखत दूध दही माखन सब लूटत

संग लिये ग्वाल तमाम।

बोलैं तो हंसि गारी देवैं गुद गुदाय सब तन को देवैं काह करैं सब बाम।

रूप अनेक धरत हरि माई कौन भाँति हम बेचन जाई नित प्रति का यह काम।

निशि को गृह गृह पहुँचै जाई लाज को तन से धोय बहाई कोई सकै न थाम।५।

ना सोवैं ना सोवन पाई नैनन में छाई औंघाई छोड़ि जाँय बृज धाम।

ग्वाल बाल हम सब के लाला जन्मायन औ बहु बिधि पाला

सब हरि कीन निकाम।

हरि के कहै में परिकै सारे बिगड़ि गये हरि की मति धारे

नैकौ नहीं अराम।८।